याचिकाकर्ता ने अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए दावा किया था कि उनके द्वारा अदालत में पेश किये गए झूठे सबूतों के कारण उसे दोषी ठहराया गया था।
मुंबई की एक विशेष अदालत ने 2006 में यहां हुए ट्रेन विस्फोटों के मामले में मौत की सजा का सामना कर रहे एक दोषी की याचिका खारिज कर दी है।
याचिकाकर्ता ने अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए दावा किया था कि उनके द्वारा अदालत में पेश किये गए झूठे सबूतों के कारण उसे दोषी ठहराया गया था।
उपनगरीय ट्रेनों में हुए सिलसिलेवार बम विस्फोटों के सिलसिले में प्रतिबंधित संगठन ‘स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया’ (सिमी) के एक कथित सदस्य एहतेशाम सिद्दीकी को चार अन्य लोगों के साथ अक्टूबर 2015 में मौत की सजा सुनाई गई थी। इस घटना में 188 लोग मारे गए थे।
याचिकाकर्ता अभी नागपुर केंद्रीय कारागार में बंद है।
सिद्दीकी की याचिका को 25 अप्रैल को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) मामलों के विशेष न्यायाधीश ए.एम. पाटिल ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि सजा सुनाये जाने के सात साल बाद अर्जी दायर करने के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।
सिद्दीकी ने दलील दी थी कि उसे मामले में फंसाया गया था और अभियोजन पक्ष के तीन गवाहों द्वारा दिए गए झूठे सबूतों के कारण उसे मौत की सजा सुनाई गई थी।
अभियोजन पक्ष ने यह कहते हुए याचिका का विरोध किया था कि मामले की सुनवाई सात साल तक चली थी और उन्होंने 192 गवाहों से जिरह की थी, जबकि बचाव पक्ष ने 51 लोगों से जिरह की थी।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि इस पूरी कवायद के दौरान याचिकाकर्ता को पर्याप्त समय मिला था लेकिन उसने गवाह के साक्ष्य की असत्यता स्थापित करने के लिये कुछ भी अदालत में पेश नहीं किया।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया।
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