प्रतापा राम, जैसलमेर. सोचिए एक पत्थर का ढेर है. ये बेतरतीब से बिखरे पड़े हैं और उसको देखकर कोई व्यक्ति कल्पना करता होगा कि ये गैरजरूरी पत्थरों का ढेर है, जो बिना किसी काम के हैं. लेकिन उसी पत्थरों से अगर दूध को दही में बदला जाए और उसी पत्थर से कोई कारीगर ऐसी चीज बना दे. जिसे देखते ही उसमें मन रम जाए तो वो पत्थर मात्र एक ढेर नहीं होकर बहुत जरूरी सामग्री बन जाता है, जिससे शानदार कलाकृतियां का निर्माण हो सकता है.
पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर में पुराने समय से पत्थर पर कला की जाती है. विश्व में फैली कई पुरानी कलाओं में यहां सबसे ज़्यादा कलाएं दिखाई देती है. पुरानी इमारतों में पत्थर पर बेहतरीन नक्काशी और सजावट और नए दौर के निर्माण में भी उसी डिज़ाइन के आधार बनाया जाता है. जैसलमेर के सोनार दुर्ग के प्रथम द्वार पर कृष्णा आर्ट्स नाम से संचालित दुकान पर फॉसिल व सैंड स्टोन से बने आकर्षक व खूबसूरत बर्तन मिलते हैं.
कृष्णा आर्ट्स के मालिक सुरेश कुमार ने बताया कि जहां पर आज जैसलमेर है, वहां पहले विशाल समुद्र हुआ करता था लेकिन धरती की उथल-पुथल में समुद्र व समुद्री जीव जमीन में दब गए जो आज पत्थर बन गए हैं और उसमें विशिष्ट गुण आ गए हैं. जिससे इसमें रखा दूध बिना किसी सहायक विलायक की मदद से दही में परिवर्तित हो जाता है. इन पत्थर के बर्तनों के उपयोग करने व इसमें बना खाना खाने से कई असाध्य बिमारियों से राहत मिलती है. इस फॉसिल पत्थर को जीवाश्म पत्थर भी कहा जाता है.
जैसलमेर पर्यटन नगरी के नाम से मशहूर है और यहां आने वाला प्रत्येक पर्यटक अपने साथ जैसलमेर से जुड़ी कुछ यादें लेकर जाना चाहता है. जिसमें यहाँ की प्रसिद्ध मिठाई हो सकती है या हैंडीक्राफ्ट के आकर्षक आइटम या फिर सुनहरे पत्थर से बने घर में काम आने योग्य जरूरी बर्तन. लेकिन जैसलमेर में निकलने वाला फॉसिल पत्थरों से निर्मित बर्तन खूबसूरत होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं तथा इसमें कुछ विशिष्ट गुण भी हैं जो विज्ञान को भी सोचने पर मजबूर कर रहे हैं.
सुरेश कुमार ने बताया कि फॉसिल पत्थर एक सीमित मात्रा में और थोड़ा महंगा मिलता है. उसके बाद बाजार तक लाने में कई और खर्च आते हैं जिससे फॉसिल पत्थर के बर्तन सामान्यतः महंगे होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : July 19, 2023, 15:46 IST