
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बोलने की आजादी पर टिप्पणी करते हुए एक शख्स के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने से इन्कार कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि बोलने की आजादी का मतलब देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करना नहीं है।
बता दें कि जौनपुर में मुमताज मंसूरी नाम के शख्स के खिलाफ एक पोस्ट को लेकर साल 2020 में एफआईआर दर्ज की गई थी। इस पोस्ट में उसने प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री समेत अन्य मंत्रियों के लिए आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया था।
मुमताज मंसूरी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उसकी याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने से इन्कार कर दिया और कहा कि “अभिव्यक्ति की आजादी” देश के नागरिक के खिलाफ अभद्र भाषा या गाली-गलौज करने की इजाजत या छूट नहीं देती है, खासकर जब कि वह नागरिक देश का प्रधानमंत्री, गृह मंत्री या सरकार का कोई अन्य मंत्री हो।
मंसूरी की याचिका को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने कहा, “हालांकि इस देश का संविधान प्रत्येक नागरिक को बोलने की स्वतंत्रता को मान्यता देता है, लेकिन यह किसी भी नागरिक के खिलाफ गाली-गलौज करने या अपमानजनक टिप्पणी करने का अधिकार नहीं देता है।”
जौनपुर जिले के मीरगंज थाने में दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि मंसूरी ने पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और अन्य केंद्रीय मंत्रियों के खिलाफ बेहद अपमानजनक टिप्पणी की थी। उस पर आईपीसी की धारा 504 (शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान) और आईटी अधिनियम की धारा 67 (इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जरिए अश्लील सामग्री को प्रकाशित या प्रसारित करने की सजा) के तहत मामला दर्ज किया गया था।
इसके बाद, जौनपुर के मीरगंज थाने में मंसूरी के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था। प्राथमिकी को चुनौती देते हुए मंसूरी ने इसे रद्द करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।